पृथ्वी लोक का अमृत जो स्वर्ग में दुर्लभ है
तक्र - छाछ - मट्ठा
क्षेम कुतूहल में लिखा है -
अमरत्वं यथा स्वर्गे देवानाममृताभ्दवेत।
तक्राद भूमो तथा नणाममरत्वं हिजायतें।।
जैसे स्वर्ग लोक में अमृत के सेवन से देवता अमर हो जाते है , वैसे इहलोक में तक्र के सेवन से मनुष्य अमर ( दीर्घायु ) हो सकते है।
इतने गुणकारी और सर्वसुलभ पेय के गुणकारी तथा रोगनिवारक प्रयोग प्रस्तुत है।
अमृतंदुर्लभं नृणां , देवानामुदकं तथा |
पितृणां दुर्लभः पुत्रस्तक्रं शक्रस्य दुर्लभम् ||
जैसे मनुष्यो के लिए अमृत , देवताओं के लिए जल , पितरो के लिए पुत्र वैसे ही इंद्र के लिए दुर्लभ होता है।
तक्र ( मट्ठा )
गुणधर्म की दृष्टी से दूध उत्तम है, दही दूध से भी उत्तम है , लेकिन तक्र यानी मठ्ठा , दूध और दही दोनों से उत्तम है। इसीलिए तक्र को पृथ्वी लोक का अमृत कहा गया है।
दूध को जामकर दही बनाया जाता है। उस दही को मथकर उसका मक्खन अलग कर देने के बाद जो तरल पेय बच रहता है, उसी को तक्र , मट्ठा , छाछ अथवा मही कहते है। मक्खन निकल जाने की वजह से छाछ पचने में हल्का हो जाता है। यह शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है क्योंकि उसमे विटामिन 'सी' होती है। साथ में विटामिन 'बी-२ ', ए ' , लेक्टिक एसिड, लोह, प्रोटीन आदि उपस्थित होते है। छाछ से प्राप्त होने वाली विटामिन 'सी' सेवनकर्ता का सौंदर्य भी बढ़ाती है।
आयुर्वेद प्राचीन काल से ही छाछ को बेहद उपयोगी पेय बताता रहा है। उदर के समस्त रोगो में छाछ उपयोगी रहती है। संग्रहणी, बवासीर, पेचिश जैसे कठिन रोग मिटाने के लिए छाछ का सेवन अनिवार्य ही समझना चाहिए। बंगसेन लिखते है की ' संग्रहणी रोगो में मट्ठा मल रोकने वाला , हल्का , अग्निदीपक और त्रिदोष नाशक होता है। '
जैसा की ऊपर बताया संग्रहणी रोग उदर का एक ऐसा कठिन रोग है जो सहज पीछा नहीं छोड़ता और मरीज के दैनिक कार्यकलाप अस्तव्यस्त हो जाते है। इस रोग में चाहे जितनी दवाइयों का सेवन किया जाये , यह रोग जड़ से दूर तो एक ही चीज से होता है जिसका नाम है , छाछ। ग्रंथो में लिखा है की जिस प्रकार अंधकार समूह को सूर्य नष्ट करता है , उसी तरह दुस्साध्य संग्रहणी को छाछ नष्ट क्र देती है।
आयुर्वेदानुसार मट्ठा उत्तम, बलकारक, पाक में मधुर अग्निदीपक होता है। यह वातनाशक, त्रिदोषनाशक, बवासीर , क्षय , कमजोरी, गृहणी दोषनाशक होता है।
एक समय था जब पाश्चात्य देशो में छाछ को अनुपयोगी माना जाता था , लेकिन बाद में इसके गुण एवं प्रभावों को देखा परखा गया तब उन्हें छाछ की उपयोगिता ज्ञात हुई। आधुनिक खोजो से यह सिद्ध हो चूका है की छाछ अनेक रोगो के अलावा ह्रदय रोगो, कोलेस्ट्रोल और कोलाइटिस जैसे घातक रोगो को ठीक करने में समर्थ है उदर रोगियों को दिन में २-३ बार छाछ का सेवन करते रहना चाहिए।
गर्मी के मौसम में छाछ के सेवन से शरीर में ताजगी और तरावट बनी रहती है। भोजन के बाद छाछ पीना सेहत के लिए बहुत उपयोगी रहता है।
सेहत के लिए कब कौन सा पेय उपयोगी रहता है , इस बारे में कहा गया है कि रात्रि के अंत में ( प्रातः ब्रह्ममुहूर्त ) में पानी, रात्रि के मध्य में दूध तथा भोजन के अंत में छाछ का सेवन करना चाहिए। यहां रात्रि के मध्य में दूध का सेवन की जो बात आयी है , उसे दपंत्तियो के संदर्भ में लिया गया है , संभोग के उपरांत आयी थकावट को दूर करने के लिए दूध एवं सूखे मेवों का सेवन करना उपयोगी है। वैसे सामान्यतः दूध का सेवन सोने से पहले किया जाता है जो उपयुक्त है।
छाछ के गुणधर्म का संक्षेप में ऊपर उल्लेख किया गया है। अब यह जानकारी देना भी उचित रहेगा कि रोग विशेष में किस प्रकार का छाछ का सेवन बेहतर लाभ पहुंचा सकता है।
- कफज रोगो में सोंठ , काली मिर्च और पिप्पली का चूर्ण यथायोग्य मात्रा में डालकर छाछ का सेवन उपयोगी रहता है।
- पित्त विकारो में शक्कर डाल छाछ का सेवन करना लाभकारी है।
- वातज रोगो में खट्टी छाछ में सोंठ और सेंधा नमक आवश्यक मात्रा में डालकर सेवन करना गुणकारी है।
आचार्य चरक के अनुसार भोजन में रूचि न रहने , पाचन शक्ति के कमजोर होने और पतले दस्त होने ( अतिसार ) की स्थिति में छाछ का सेवन अमृत के समान गुणकारी होता है।
छाछ : विशिष्ट तथ्य
- शरीर में घाव हो जाने , सूजन होने , अतिशय शारीरिक दुर्बलता , मूर्च्छा , भ्रम और बार-बार प्यास लगने वाले तृषा रोग में छाछ का सेवन नुकसान पहुंचा सकता है।
छाछ के प्रकार
छाछ में मक्खन तथा पानी की स्थिति आधार पर छाछ ५ प्रकार की बतायी गयी। १ ) घोल २) मथित ३) तक्र ४) उदशृीत और ५) छाछ। आयुर्वेदानुसार प्रकार भेद से छाछ के गुणों में परिवर्तन हो जाता है , जैसे -
घोल -
जब दही को बिना पानी डाले बिलोया ( मथा ) जाता है , तब इसे ' घोल ' कहते है। घोल ग्राही , मल को बांधने वाला , शीतल , दीपन , पाचन है। यह वात ( वायु ) नाशक लेकिन कफ को बढ़ाता है।
गर्म तवे पर सेका हुआ जीरा, हींग तथा स्वादानुसार सेंधा नमक को घोल में मिलाकर सेवन किया जावे तब यह वायुनाशक, अर्श और अतिसार दूर करने वाली , नाभि के निचे के भाग में होने वाले शूल को नष्ट करती है। यह घोल बलवर्धक, पुष्टिकारक और रुचिवर्धक होती है।
मथित
दही के ऊपर लगी हुई मलाई को अलग करके दही को बिलोकर तैयार पेय ' मथित ' कहलाता है यह मन को आंनद प्रदान करता है। अर्श , संग्रहणी तथा डायरिया (ग्रीष्म ऋतु में होने वाला दस्तरोग ) को दूर करता है तथा वायु ( वात ) और पित्त को नष्ट करता है।
तक्र
दही में उसकी चौथाई मात्रा में पानी मिलाकर बिलोकर तैयार हुआ पेय ' तक्र ' कहलाता है। तक्र पाक में मधुर , उष्ण वीर्य , पचने में हल्का , भूख बढ़ाने वाला , खट्टा , कषैला , वायुनाशक , तृप्तिदायक और कामशक्ति वर्धक होता है।
उदश्वित
जब दही में उसका आधा हिस्सा पानी मिलाकर मथा जाये तो तैयार हुआ पेय ' उदश्वित ' कहलाता है जो कफकारक, आमनाशक और बलवर्धक होता है।
छाछ
दही में अधिक मात्रा में पानी मिलाकर तथा मथने से ऊपर आया मक्खन भी अलग कर लिया जाए , पुनः मथा (बिलोया )जाये तब तैयार हुआ पतला पेय ' छाछ ' कहलाता है। इस छाछ के गुणों का वर्णन ऊपर किया गया है।
पाचन की दृष्टी से घोल की अपेक्षा मथित ( मट्ठा ) और मट्ठे की अपेक्षा छाछ पचने में हल्की होती है। पाचन की दृष्टी में दूध की समस्त बनावटों में छाछ सबसे हल्की होती है।
- सोंठ का चूर्ण या अजवाईन चूर्ण एक छोटे चम्मच (५ ग्राम ) को मामूली काला नमक के साथ प्रातः दोपहर एक गिलास मठ्ठे से सेवन करने पर बवासीर, संग्रहणी, अतिसार में लाभ होता है।
- खुनी या बादी बवासीर में प्रातः सेंधा नमक मिलाकर छाछ का सेवन करे। छाछ से नष्ट मस्से दुबारा नहीं होते है।
- काली मूसली का चूर्ण ५ ग्राम या काली मिर्च , चिता , काला नमक का समभाग चूर्ण ५ ग्राम प्रातः छाछ में मिलाकर पिने पर पुरानी से पुरानी संग्रहणी चली जाती है।
- सोंठ , नागरमोथा, बायविडंग को बराबर मात्रा में चूर्ण क्र ले। दो चम्मच की मात्रा में चूर्ण दोपहर के भोजन और प्रातः के नाश्ते में छाछ के साथ लगातार कुछ दिन लेने से भी संग्रहणी , पेट के कीड़े पेट की गुड़गुड़ाहट में अत्यंत लाभ होता है।
- प्रातः बासी मुंह भुने जीरे और सेंधा नमक के साथ मठ्ठा सेवन करने से समस्त उदर विकार , पेट दर्द , अतिसार , संग्रहणी, बवासीर , कोलाइटिस सभी रोग नष्ट होते है।
- किसी प्रकार की बवासीर , कोलाइटिस , कभी पतले दस्त , कभी शौच न होना जैसी समस्याओ में करीब दो से तीन माह तक डेढ़ चम्मच पीसी अजवाईन को चुटकीभर काले नमक के साथ ताजा मठ्ठा एक गिलास की मात्रा में प्रातः एवं दोपहर में पिलाएं। सभी रोग जड़ से चले जाएंगे।
- जीरा पीपली,सोंठ,काली मिर्च, अजवाईन , सेंधव नमक के समभाग चूर्ण में से दो चम्मच की मात्रा प्रातः दोपहर एक या आधे गिलास ताजी छाछ से सेवन करने में वायु गोला , तिल्ली , गैस , भूख की कमी , अपच , अजीर्ण, बवासीर, संग्रहणी, सभी रोग नष्ट होते है।
- बच्चो को अतिसार हो तब भी मठ्ठा लाभप्रद है।
- आम की छाल मट्ठे में पीसकर नाभि पर लेप करने से भी दस्त बंद हो जाते है।
कब्ज या कोष्ठवद्धता -
- बासी छाछ में काला नमक मिलाकर पिने से लाभ होता है।
- जीर्ण कोष्ठबद्धता में छाछ को बाजरा के साथ सेवन से लाभ होता है।
- छाछ में अजवायन, बिडलवण मिलाकर पीने से कोष्ठबद्धता दूर होती है।
अजीर्ण
छाछ में काली मिर्च के चूर्ण एवं सेंधानमक मिलाकर पीने लाभ होता है।
उच्चरक्तचाप
सादा छाछ पिने से रक्तचाप सामान्य रहता है। इससे सभी ह्रदय रोगो से बचा जा सकता है।
मूत्रकृच्छ
- छाछ में गुड़ मिलाकर सेवन करने से मूत्र खुलकर आता है।
- छाछ में २-३ माशा शुद्ध गंधक मिलाकर सेवन से मूत्र खुलकर आता है।
मूत्रदाह
श्वेतचन्दन का बुरादा एक चमच , एक गिलास छाछ में मिलाकर सेवन कराने से शारीरिक गर्मी दूर होकर मूत्रदाह से लाभ मिलता है।
वमन
एक कप छाछ में अनार के छिलके का चुटकी भर चूर्ण एवं एक छोटी इलाचयी का चूर्ण मिलाकर सेवन से लाभ होता है।
अर्श
- छाछ में चित्रक मूल की छाल का महीन चूर्ण मिलाकर नियमितता से सेवन करने से लाभ होता है।
- छाछ में इन्द्रजौ का महीन चूर्ण मिलाकर सेवन करने से रक्तार्श (खुनी बवासीर ) में लाभ होता है।
- छाछ में जीरा, हींग, सेंधानमक एवं अजवाइन का महीन चूर्ण मिलाकर सेवन करने से लाभ होता है।
सौंदर्य वर्धक -
- छाछ में चेहरा नियमित रूप से धोने से कील-मुहासे के दाग-धब्बे एवं कालापन दूर होकर त्वचा सुन्दर एवं कांतिमय दिखाई देती है।
- बासी छाछ में बेसन मिलाकर पेस्ट बना ले एवं रात्रि में सोते समय स्थानीय लेप लगाए , सुबह ठन्डे पानी से धो ले ऐसा कुछ दिनों तक करने से झाइयां मिटकर चेहरा कांतिमय दिखाई देता है।
- जो भी अंग कपड़ो से बाहर रहते है जैसे हाथ एवं पैरो पर एवं बालो पर छाछ लगाने से अंग कांतिमय हो जाता है।
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